हिंदी विरोध में गरजे स्टालिन, दशकों पुरानी बहस फिर गर्म, जानिए पूरा विवाद

तमिलनाडु में हिंदी भाषा को लेकर विरोध कोई नया विषय नहीं है। यह विवाद दशकों पुराना है और समय-समय पर राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों के रूप में उभरता रहा है। हाल ही में, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने हिंदी के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराया और मैथिली तथा अवधी जैसी अन्य भाषाओं पर भी सवाल उठाए। वहीं, राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने इस विवाद को असली समस्या से ध्यान भटकाने वाला मुद्दा बताया।

हिंदी विरोध का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
1. 1930 के दशक के अंत में मद्रास प्रेसीडेंसी में कांग्रेस सरकार ने स्कूलों में हिंदी को एक विषय के रूप में पेश करने की कोशिश की। इसके विरोध में ईवी रामासामी और जस्टिस पार्टी ने आंदोलन किया। यह आंदोलन तीन साल तक चला, जिसमें दो प्रदर्शनकारियों की जान गई और 1,000 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया।
2. तमिलनाडु में हिंदी विरोधी दूसरा आंदोलन 1946 से 50 के बीच हुआ, जब सरकार ने हिंदी को पूरे भारत में अनिवार्य करने की योजना बनाई थी। इसके खिलाफ तमिलनाडु में कई आंदोलनों ने जन्म लिया। तब एक समझौते के आधार पर हिंदी को वैकल्पिक विषय बना दिया गया।
3. 1963 में, आधिकारिक भाषा अधिनियम पारित होने के विरोध में, अन्नादुरई के नेतृत्व में डीएमके ने विरोध प्रदर्शन शुरू किया। इस दौरान, डीएमके के एक सदस्य चिन्नासामी ने त्रिची जिले में आत्मदाह कर लिया।
4. 1965 में जब प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने हिंदी को प्रमुख सरकारी भाषा बनाने की बात कही, तब तमिलनाडु में भारी विरोध हुआ और प्रदर्शनकारियों को पुलिस की कार्रवाई का सामना करना पड़ा।
5. 1970 और 1980 के दशक में भी हिंदी विरोध के स्वर तमिलनाडु में बने रहे।
6. 2019 और 2021 में केंद्र सरकार द्वारा नई शिक्षा नीति में हिंदी को प्राथमिकता देने की बात कही गई, जिससे फिर से विवाद पैदा हुआ।

तमिलनाडु सरकार का ताजा बयान
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने हाल ही में हिंदी भाषा के साथ-साथ मैथिली और अवधी जैसी भाषाओं पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार हिंदी को थोपने के बहाने अन्य भाषाओं की उपेक्षा कर रही है।

प्रशांत किशोर का पलटवार
राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने स्टालिन के इस बयान पर तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि हिंदी विरोध का इस्तेमाल वास्तविक समस्याओं से जनता का ध्यान हटाने के लिए किया जा रहा है। प्रशांत किशोर ने कहा कि तमिलनाडु को शिक्षा, रोजगार और आर्थिक विकास पर ध्यान देना चाहिए, न कि भाषा के मुद्दों पर।

क्या यह विवाद खत्म होगा?
हिंदी विरोध का यह मुद्दा सिर्फ तमिलनाडु तक सीमित नहीं है। कई दक्षिणी और पूर्वोत्तर राज्यों में भी हिंदी को लेकर संदेह की स्थिति बनी रहती है। आगे की राजनीति इस बात पर निर्भर करेगी कि केंद्र सरकार और तमिलनाडु सरकार इस मुद्दे को कैसे संभालती हैं।

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