1 फरवरी 2025 को प्रस्तुत किए गए केंद्रीय बजट में जनगणना और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) के लिए मात्र 574 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है, जिससे इस वर्ष इन महत्वपूर्ण अभियानों के संचालन की संभावना कम नजर आ रही है।
आवंटन का विवरण
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा प्रस्तुत बजट में गृह मंत्रालय के अंतर्गत जनगणना संचालन के लिए 550 करोड़ रुपये और एनपीआर के लिए 24 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। विशेषज्ञों के अनुसार, यह राशि इतनी कम है कि इससे 2025 में जनगणना और एनपीआर की प्रक्रिया शुरू करना संभव नहीं होगा।
जनगणना और एनपीआर की पृष्ठभूमि
भारत में हर दस वर्ष में जनगणना की जाती है, जिसमें देश की जनसंख्या, सामाजिक-आर्थिक स्थिति, साक्षरता दर, और अन्य महत्वपूर्ण आंकड़े एकत्र किए जाते हैं। 2011 में अंतिम जनगणना हुई थी, और 2021 में अगली जनगणना होनी थी। हालांकि, कोविड-19 महामारी के कारण यह प्रक्रिया स्थगित कर दी गई थी।
एनपीआर का उद्देश्य देश में रहने वाले सभी निवासियों का एक व्यापक डेटाबेस तैयार करना है, जिसमें जनसांख्यिकीय और बायोमेट्रिक जानकारी शामिल होती है। एनपीआर को राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) की तैयारी के लिए एक आधार माना जाता है।
विलंब के कारण और प्रभाव
महामारी के बाद, जनगणना और एनपीआर की प्रक्रिया को पुनः शुरू करने की उम्मीद थी, लेकिन बजट में सीमित आवंटन के कारण यह संभावना कम हो गई है। जनगणना के विलंब से सरकार और नीति निर्माताओं के पास अद्यतन जनसांख्यिकीय आंकड़ों की कमी होगी, जो विभिन्न योजनाओं और नीतियों के निर्माण में महत्वपूर्ण होते हैं।
राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रियाएं
जनगणना और एनपीआर के विलंब पर विभिन्न राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों ने चिंता व्यक्त की है। उनका मानना है कि अद्यतन आंकड़ों के बिना, सरकार की योजनाओं का प्रभावी कार्यान्वयन संभव नहीं होगा। इसके अलावा, एनपीआर को लेकर देश के कुछ हिस्सों में विरोध भी देखा गया है, जिसमें इसे एनआरसी से जोड़ने की आशंका व्यक्त की गई है।
आगे की राह
बजट 2025 में सीमित आवंटन के बावजूद, सरकार भविष्य में जनगणना और एनपीआर की प्रक्रिया को शुरू करने के लिए अतिरिक्त संसाधन आवंटित कर सकती है। हालांकि, वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए, 2025 में इन अभियानों के संचालन की संभावना कम प्रतीत होती है।
बजट 2025 में जनगणना और एनपीआर के लिए सीमित आवंटन ने इन महत्वपूर्ण अभियानों के भविष्य पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है। अद्यतन जनसांख्यिकीय आंकड़ों की अनुपलब्धता से नीतिगत निर्णयों और योजनाओं के कार्यान्वयन में चुनौतियां उत्पन्न हो सकती हैं। सरकार को इस दिशा में ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है ताकि देश की विकास प्रक्रिया में बाधा न आए।